Menu
blogid : 4034 postid : 4

हमारी माँग ,भारतीय रेल को प्रजातांत्रिक बनाया जाए ?- गिरीश नागड़ा

deshjagran
deshjagran
  • 45 Posts
  • 21 Comments

हमारी माँग ,भारतीय रेल को प्रजातांत्रिक बनाया जाए ?- गिरीश नागड़ा

मेरा आज इन्दौर से हावडा जाना बेहद जरूरी है और मेरे पास रिजर्वेशन नही है सामान्य बोगी जिसे जनरल भी कहा जाता है उसमें पैर रखने की भी जगह नही है प्रथम श्रेणी वातानुकूलित में या हवाई यात्रा करना मेरे बस में नही है और एक पैर पर शोचालय मे खडे होकर इतनी लंबी यात्रा के अनुकूल स्वास्थ्य नही है फिर मै क्या करुंगा ? क्या करुंगा! अपनी यात्रा रद्द करने के अलावा मेरे पास और कोई विकल्प ही नही है वही मै करुंगा । और बेहद जरूरी कार्य के न कर पाने की हानि उठाउंगा और शर्मिन्दगी झेलूंगा बस इसके अलावा और मै कर भी क्या सकता हूँ ?

अगर समूची ट्रेन सामान्य बोगी की होती तो मुझे किसी न किसी बोगी में पैर रखने की जगह तो मिल ही जाती और मै इस हानि और शर्मिन्दगी से भी बच जाता । मेंरे जैसे जाने कितने ही लोग है जो इस परिस्थिति से प्रतिदिन दो चार होकर परेशान और विवश होते है और उनके पास भी मेरी तरह से कोई विकल्प नही होता है । कहते है प्रजातंत्र में सबसे अधिक विकल्प मौजूद होते है परन्तु भारत मे हम देखते है कि आम प्रजा के लिए ही कहीं कोई विकल्प नही होता जो जैसा है यही उनका भाग्य है या कहे दुर्भाग्य है और इसी विवशता के साथ उन्हे निर्वाह करना है। ऐसा क्यो है यह तंत्र को गंभीरता के साथ सोचना चाहिए। रेल्वे मे भी ऐसा ही है रेलमंत्री को भी इस विषय में सोचना चाहिए कि आम जनता की सामान्य बोगी की यात्रा को सुखद और सुविधापूर्ण बनाने के बारे में आज तक कभी विचार क्यो नही किया गया?

भारत मे शासन चाहे किसी भी दल का हो किसी भी रेलमंत्री ने आज तक आम जनता के बारे में कभी सोचा ही नही न ही कभी उनकी कोई परवाह की है। प्रश्न यह है कि आम जनता की सामान्य बोगी की यात्रा का आज तक कभी विचार क्यो नही किया गया क्यो आम जनता की यात्रा की इतनी गंभीर उपेक्षा की गई ? दस प्रतिशत रेल का स्थान नब्बे प्रतिशत आम जनता के लिए क्यो रखा जाता है और नब्बे प्रतिशत स्थान दस प्रतिशत खास लोगो के लिए क्यो रखा जाता हैे ? और अस्सी प्रतिशत रेले खास रेल्वे स्टेशनो के लिए और बीस प्रतिशत रेले अस्सी प्रतिशत स्टेशनो के लिए क्यो तय है ? सारा ध्यान राजधानी, दुरन्तो, शताब्दी ,आदि ए सी गाडियो पर और बडें बडे रेल्वे स्टेशनो पर ही क्यो केन्द्रित रहता है ? क्या प्रजातंत्र में प्रजा की यात्रा को कष्ट साध्य मुश्किलो भरा बनाकर मोटी तन्खाह वाले खास एंव धनवानो की सुखद यात्रा के लिए प्रजा के पैसो से ट्रेने चलाना उचित है ? सच पूछा जाये तो प्रजातंत्र मे शासन के द्वारा संचालित एवं सार्वजनिक उपयोग के किसी भी मामले में आम को नजर अंदाज कर खास को महत्ता देना उस सेवा का पूरी तरह से दुरूपयोग करना कहा जायेगा बल्कि यह तो प्रजातंत्र मे आम प्रजा के अधिकारो पर डाका डालने जैसा मामला है रेल्वे के मामले में शासन यही तो कर रहा है इस मामले में न्यायालय को भी संज्ञान अवश्य ही लेना चाहिए । आज सभी जानते है कि आम रेल यात्रा कितनी अधिक कठीन हो गई है उसमे स्थान पाना तो किसी चमत्कार से कम नही होता ।

ए सी एवं प्रथम श्रेणी की ट्रेन चलाना तो बहुत ही गलत बात है ही परन्तु ट्रेन में प्रथम श्रेणी और ए सी की एक भी बोगी रखना भी पूरी तरह से अनुचित है यह पूरी तरह से बंद होना चाहिए । कैसे कब और क्यो हमारे प्रजातंत्र में राजधानी दुरन्तो और शताब्दी जैसी ट्रेने रेल्वे में शामिल कर ली गई और किसी भी नेता या दल के द्वारा इस सरओम डकैती के प्रयास का विरोध तक नही किया गया आश्चर्यजनक और दुखद है। हमने आजादी के वक्त गांधीजी के आदर्शो पर चलने की कसम खायी थी ऐसे तो हरगिज नही थे नही थे गांधीजी के आदर्श ? विकास हो और सबको आरामदायक सुख सुविधा मिले यह तो अच्छी बात है परन्तु आम और बहुसंख्यक जनता को कष्ट में रखकर उनकी छाती पर खडे होकर तो इसकी अनुमति कदापि नही दी जा सकती । जब तक आप आम जनता की आम प्राथमिक यात्रा को कष्ट रहित एवं सरल नही कर देते तब तक ट्रेन सहित शासन के द्वारा संचालित एवं सार्वजनिक उपयोग के किसी भी मामले में आम को नजर अंदाज कर खास को महत्ता विशेषाधिकार देना जैसे प्रथम श्रेणी वातानुकूलित श्रेणी बनाना उस सेवा की पूरी तरह से डकैती करना ही कहा जायेगा । जब तक आम जनता के सम्पूर्ण संबधित कष्ट हल नही हो तब तक प्रजातंत्र मे यह प्रजा के साथ यह अन्याय अपराध ही माना जाकर प्रतिबंधित रहना चाहिए। जी हां इस एसी क्लास को कम से कम सार्वजनिक सेवाओ से पूरी तरह से तब तक बंद करने के पक्ष में हूं जबतक हम साधारण क्लास की न्यूनतम आधारभूत आवश्यकता को पूरा नही कर देते ।

आपको जानकारी होगी कि भारत में ट्रेनो में बेहद भीड रहा करती है और एक माह पूर्वतक के रिजर्वेशन भी कठिनाई पूर्वक ही मिल पाते है इसका अर्थ है कि यात्री अधिक है और स्थान कम है ,सच पूछा जाये स्थान कम तो नही है परन्तु उसका दुरूपयोग किया जा रहा है ।एक समूची एसी ट्रेन केवल तीन सौ लोगो को लेकर ,जंक्शन से जंक्शन या महानगर से महानगर दौडती है अगर यही ट्रेन साधारण बोगी की हो और सामान्य स्टापेज करे, तो तीन हजार लोग भी थोडी सुविधा असुविधा के साथ उसमे यात्रा कर सकते है क्योकि वे बेसब्री से प्रतिक्षारत है ,जरूरतमंद है . आपका यह मानना सही भी हो सकता है कि तीन सौ लोगो के टिकट का मूल्य तीन हजार यात्रियो के टिकट के मूल्य से अधिक हो सकता है परन्तु किस कींमत पर ! दोहजार सात सौ यात्रियो को उनकी यात्रा के अधिकार से वंचित करके, क्या यह मूल्य कुछ अधिक नही लगता ?

दूसरी और यह मानकर क्यो चला जा रहा है कि यात्रा का अधिकार और सुविधा की केवल शहर के लोगो को ही आवश्यकता है जबकि सत्तर प्रतिशत जनता गांवो में ही निवास करती है गांधीजी ने भी कहा है कि भारत की आत्मा गांव में बसती है फिर उनको क्यो इस कदर नजर अंदाज किया गया और लगातार किया जा रहा है । तमाम नेता ताकतवर लोग और मीडिया शहरो मे निवास करता है और वह गांव में तब ही पहुंचता है जब चुनाव होता है या कोई बडी दुर्घटना होती है तो फिर गांवो की आवाज कौन उठायेगा ? होना यह चाहिए कि गांवो की सुविधाओ मे कटौती करने के स्थान पर गांवो को अतिरिक्त रियायत और सुविधा देना चाहिए ताकि गांवो में रहने वालो को कुछ अनुकुलता प्राप्त हो और गांव से पलायन की गति कुछ कम हो । जबकि आज रियायतो के नाम पर गांवो के साथ उन्हे नजरदांज कर सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। होना यह चाहिए कि हर गांव को पैसेजर टे्रन के साथ साथ कम से कम एक एक एक्सपे्रस ट्रेन का स्टापेज अवश्य दिया जाना चाहिए । गांव के मामले में स्टापेज के साथ आय के गणित को कदापि नही जोडा जाना चाहिए। हमारा उद्देश्य गांवो को रियायत देकर गांव के साथ शहर की दूरी को कम करना होना चाहिए ।गांव समूचे देश का पालन करते है इसका उन्हे ईनाम मिलना चाहिए जबकि रेल्वे एवं शासन प्रशासन गांवो को सजा देने की नीति पर चल रहे है जो पूरी तरह से गलत है ।

रेल्वे को अपनी भूलसुधार के लिए कुछ आधारभूत सुझाव यहां प्रस्तुत है जिन पर अमल कर रेल्वे अपने चेहरे को प्रजातंत्र के कुछ निकट ला सकता है

1 रेल्वे से कमाई के गणित को दूर रखा जाये जनहित एवं जनसुविधा का ही प्राथमिकता के साथ ध्यान रखा जाना चाहिए

2 भारतीय रेल को केवल आम लोगो के लिए पूरी तरह से आरक्षित कर दिया जाना चाहिए

3 रेलो में केवल तीन ही विभाजन हो वह भी दूरी के हिसाब से हो

एक अत्यंत छोटी यात्रा जिसमे सौ किलोमीटर तक की छोटी यात्रा करने वाले अप डाउन करने वाले स्थान उपलब्ध होने पर बैठकर या फिर खडे होकर यात्रा कर सके

छोटी यात्रा के लिए कुर्सीयान अर्थात तीन सौ किलोमीटर तक की यात्रा जिसमे बैठने की व्यवस्था उपलब्ध कराई जाये

तीसरी लंबी यात्रा के लिए शयनयान तीन सौ किलोमीटर से अधिक की यात्रा जिसमे यात्री को शयन करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।

4 कोई भी कर्मचारी अधिकारी मुफ्तयात्रा न करे

5 सभी यात्रियो के साथ सम्मानजनक एवं समान व्यवहार किया जाए ।

6 ट्रेन में उतरने और च़ने के लिए अलग अलग द्वार निर्धारित हो

7 हर बोगी में एक व्यक्ति की डयूटी हो वह ही टिकिट दे यात्रियो को स्थान बताए और उनकी मदद भी करे । आश्यकता होने पर डाक्टर पुलिस या टे्रन के चालक से सम्पर्क करे ।

8 ट्रेनो में यात्रा का किराया कम से कम होना चाहिए ।

9 गांव से शहर या शहर से गांव की टिकिट पर भारी रियायत दी जाना चाहिए ।

10 रात दस बजे के बाद उतरने वाले यात्रियो को रेल्वे स्टेशन पर रात्री विश्राम /शयन करने की विश्रामघर में सुविधा होनी चाहिए ।इसमे वर्तमान के अनुसार कोई श्रेणी विभाजन भी नही होना चाहिए । वर्तमान समय में सामान्य रेल्वे स्टेशनो के जंक्शन स्टेशनो जिला स्टेशनो को छोडकर क्योकि वहां शयनयान एवं प्रथमश्रेणी के साफ सुथरे विश्रामघर होते है विश्रामघरो मे इतनी गंदगी रहती है कि कोई भला आदमी वहां विश्राम कर ही नही सकता । बाथरूम और शोचालयो में तो आप पैर भी नही रख सकते ।

11 रेल्वे स्टेशनो पर सुरक्षा शोचालय पानी पेयजल साफसफाई चाय नाश्ता भोजन चिकित्सा आदि की प्र्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए वर्तमान में रेल्वे स्टेशनो पर गुंडो का राज रहता है सुरक्षाबल उनसे दोस्ती और वसूली में विश्वास रखता है। साफ सफाई बिल्कुल नही रहती है।और खाने पीने के जो भी खाद्य एवं पेय पदार्थ वहां बेचे जाते है वे एकदम घटिया और मंहगें होते है । इस सब पर न किसी की निगाह होती है न ही नियंत्रण दिखाई देता है यह सब भी देखा जाना चाहिए और इसके लिए स्टेशन मास्टर को जिम्मेदार बनाया व ठहराया जाना चाहिए ।

12 वर्तमान में हमारे ट्रेक पचास किमी प्रति घंटे के हिसाब से बने हुए है और हमारी ट्रेनो की औसत रफ्तार भी यही है हम दुनिया की नकल न भी करे तो भी यह रफ्तार सौ किमी की करने का प्रंयास होना चाहिए ।

13 वर्तमान समय मे इतनी संचार क्रांति के बावजूद रेलो के आने व जाने का बिल्कुल सही समय बताने की कोई व्यवस्था नही है जबकि यह कोई बहुत कठीन नही है और इसके लिए लापरवाही ही जिम्मेदार है । इसे ठीक करना चाहिए ।

14 रेल्वे में शिकायत की व्यवस्था होने के बावजूद जनता उसका कोई उपयोग नही कर पाती क्योकि शिकायत करने वाले को स्टेशन मास्टर के दफ्तर में जाना पडता है और वहां उसे शिकायत रजिस्टर देने के पहले अनैक सवालो का जवाब देना होता है और फिर शिकायत न करने के लिए समझाया या डराया जाता है कि उसे चक्कर लगाना होगे परेशान होना होगा आदि । अब इसकी जगह एक टोल फ्री नम्बर टिकिट पर अंकित होना चाहिए जिस पर चौबिस घांटे वह अपनी शिकायत दर्ज कर सके ।

अगर इन बातो सुझावो पर ध्यान दिया जाकर अगर अमल किया जाता है तो आमजनता को कुछ राहत महसूस होगी और रेल्वे को भी अपना चेहरा कुछ उजला महसूस होगा ।

रेल्वे से एसी और मुफत यात्रा की विदाई हो जाने से निश्चिंतरूप से कुछ लोगो की सुखसुविधा मे कमी होगी और उनके अहंकार को भी चोट पहुंचेगी वे इसका विरोध भी करेंगें ऐसे सभी लोगो से मेरा निवेदन है कि वे इस सच को स्वीकार करते हुए कि प्रजातंत्र में सार्वजनिक सेवाओ में विशेषाधिकार चाहना भोगना अनुचित है अपने सौजन्य का परिचय का परिचय देंगे और उदारता पूर्वक इसे स्वीकार कर लेंगें साथ ही आशा ही नही वरन पूर्ण विश्वास है कि वे स्वयं आगे आकर इसके लागू होने मे सहयोग भी करेगे ।

आपसे भी निवेदन है कि आप अपने पद हैसियत स्थान के हिसाब से इस लेख में दिये गये सुझावो को अमल लाने के प्रयासो को बल गति और समर्थन देने का कष्ट करे अगर आप राजनीति से जुड़े है तो वर्तमान सांसदो तक इस लेख को फारवर्ड करने और इस मुददे को संसद में उठाने की मांग करने की कृपा करे ।

आपका बहुत आभार व धन्यवाद ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh