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अन्ना तुम चुनाव लड़ो देश तुम्हारे साथ है

deshjagran
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अन्ना तुम चुनाव लड़ो देश तुम्हारे साथ है
मैने अन्ना के राजनीति में आने के निर्णय पर अनैको तरह के विचार पढ़े सुने कई लोग इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे है वे इसे दिवालियापन ,कागज के शेर ,देश साथ विश्वासघात करने वाला कदम ,एक भटकाव ,गलती भूल निरुपित करने वाला कदम बता रहे है इस तरह के जितने भी विचार है वे तात्कालिक प्रतिक्रया हो सकते है परन्तु उन्होंने दूरदृष्टीपूर्ण गहन विश्लेष्ण करने का प्रयास नहीं किया है यह अलग बात है कि अन्ना राजनीति में असफल हो जाये क्योकि उन्होंने कुछ भारी गलतियाँ की है जैसे -उनकी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर की गई टिप्पणी जो सबसे गेर जरूरी एव अनावश्यक था दूसरी गलती २५ दिसम्बर का अनशन करने का निर्णय था क्योकि इसकी परिणिति असफलता ही थी यह बिलकुल स्पष्ट था जिसकी सम्भावना इस खाकसार ने पन्द्रह दिन पहले ही करते हुए कहा था कि मुट्ठी को बंद ही रहने दो लाख की बंद मुट्ठी खुल जाने पर खाक की हो जाती है और वही हुआ आज अन्नाटीम अपना आब खोकर हंसी का पात्र बन गई है और यह हंसी वे ही लोग उड़ा रहे है दरसल जिनके खिलाफ यह आन्दोलन था इन्हें उसका अवसर मिल गया था
खैर ,लेकिन संभावनाए पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है अगर आगे अन्नाटीम सोच विचार कर योजनाबद्ध तरीके से २०१४ के चुनाव की तैयारी बैगेर गैरजरूरी बयानबाजी के करती है तो बहुत सम्भावना है कि अन्नाटीम चुनाव में सफलता के झंडे गाड दे अन्नाटीम को उन लोगो की प्रतिक्रिया पर बिलकुल ध्यान नहीं देना चाहिए जो लोग विरोध या निराशा प्रकट कर रहे है
दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात अपने दिमाग से इस बात को बिलकुल निकाल देना चाहिए की हर प्रत्याशी को दस बीस करोड़ रुपया खर्च करना जरूरी होगा बल्कि इस विश्वास के साथ चुनाव की तैयारी एवं प्रचार करना चाहिए कि हमारा प्रत्याशी धन पर नहीं जन पर विश्वास कर चुनाव लडेगा चूंकि वह अपने स्वार्थ के लिए नहीं जनता और देश की सेवा के लिए चुनाव लड़ रहा है अत: जनता ही उसका द्वार द्वार जाकर प्रचार करे करोड़ो खर्च कर चुनाव लड़ने की परम्परा ही गलत है क्योकि जो घर के करोड़ो खर्चकर चुनाव लड़ता है वह खर्च नहीं निवेश समझकर चुनाव लड़ता है और जीतने पर अपने निवेश को सूद और भारी मुनाफे के साथ वसूल करने का लक्षय सामने रख कर काम करता है इसीलिए इस देश में इस कदर भ्रष्टाचार फैला हुआ है समझ ले करोड़ो का चुनाव भ्रष्टाचार की गंगोत्री है
अन्ना को चुनाव नहीं लड़ने को लेकर यह तर्क भी दिए जाते है आज राजनीति बहुत बुरी एवं गन्दी हो गई है अत:अन्ना को ऐसी राजनीति से दूर ही रहना चाहिए ऐसे सभी विचारको से मेरा कहना है की आज राजनीति बहुत बुरी एवं गन्दी इसलिए है क्योकि अच्छे लोगो ने राजनीति से दूरी बना कर रखी है अच्छे लोग राजनीति में आयगे तो राजनीति भी अच्छी हो जाएगी क्योकि झूठ के पैर नहीं होते बुरे लोग वास्तव में कागज के शेर होते है और इसलिए दहाड़ते है कि उन्हें अब तक असली शेर की चुनोती नहीं मिली होती है इसलिए अच्छे लोगो को राजनीति में अवश्य साधिकार प्रवेश करना चाहिए देश को उनकी बहुत आवश्यकता है आप एक मिनिट के लिए यह विचार करे की अगर आजादी के बाद मह्त्वाकांक्षी नेहरुजी के स्थान पर गांधीजी देश के प्रधानमन्त्री बनते तो आज देश की स्थिति कैसी होती सुनिश्चितरूप से आज से लाख दर्जे अच्छी एवं साफसुथरी होती परन्तु अच्छे गांधीजी ने राजनीति में आने से परहेज किया और बुरे लोग सत्ता पर चढ़ कर बैठ गये
अन्ना में कुछ समझ ,होशियारी कम हो सकती है ऐसा होगा तो भी चलेगा परन्तु जरूरी बात है देश के लिए उनका दिल धडकता है उनमे सेवा का भारी जज्बा है और सबसे बड़ी बात वे ईमानदार है ऐसे सभी लोगो को राजनीति में आना ही चाहिए उनका दिल से स्वागत किया जाना चाहिए अगर आप अन्ना आन्दोलन के समर्थक थे और अगर आप अच्छे है ,सच्चे है ,देश को दिल से चाहते है तो अब मेहरबानी कर यह कहना बंद कीजिये की अन्ना के राजनीति में आने से आपका दिल टूट गया है अब कुछ अधिक व्यवहारिक परिपक्वता का परिचय दीजिये और कहिए की अन्ना तुम्हारा देश की राजनीति में दिल से स्वागत है ,अन्ना तुम चुनाव लड़ो देश तुम्हारे साथ है आजतक देश के सामने कोई विकल्प मोजूद नहीं था वे सांपनाथ या नागनाथ में से किसी एक को चुनने के लिए विवश थे अब देश के सामने अन्नाटीम के रूप में एक ईमानदार विकल्प मोजूद है समूचा देश एक जुट होकर अन्नाटीम को स्पष्ट बहुमत से विजयी बनाएगा और देश को एक भरोसेमंद ईमानदार सरकार प्राप्त होगी और अन्नाटीम भी अपनी ईमानदारी की शक्ति को देश के हित में खुलकर लगा सकेगी इसलिए अन्नाटीम से विनम्र निवेदन है कि वह अब अपनी शक्ति चुनाव की तैयारी में लगाये

गिरीश नागड़ा
88,एस- 1,एस सी,स्कीम नं 78
इंदौर

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