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उमर अब्दुल्ला द्वारा मचाये गये बवाल और नाराजी

deshjagran
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मुजाहिदीन आतंकी लियाकत अली शाह की गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला द्वारा मचाये गये बवाल और नाराजी ने जम्मू- कश्मीर सरकार की आतंकियों के सर्मपण और पुनर्वास की नीति पर और उनकी नीयत पर एक बार फ़िर से सवालिया निशान लगा दिया है ?
सीआरपीएफ कैंप पर हमले के करीब 10 दिन पहले ही आईबी ने यह अलर्ट जारी कर दिया था कि सीआरपीएफ के कैंपों और आर्मी के दस्ते पर आतंकवादियों का हमला हो सकता है इसके बावजूद जम्मू1 कश्मीपर सरकार ने श्रीनगर में तैनात सीआरपीएफ को दिये गये अपने संदिग्ध नियत वाले उस आदेश को रद्द नही किया जिसके अनुसार सीआरपीएफ अपने साथ फायरआर्म्स लेकर नहीं चल सकती थी। इस आदेश की कोई वाजिब वजह भी सीआरपीएफ को नही बताई गई थी | इसी वजह से जब आतंकवादियों ने सीआरपीएफ कैंप पर हमला किया तो उस वक्त। जवानों के हाथ में केवल लाठियां थीं। इस हमले में सीआरपीएफ के पांच जवान मारे गए जबकि 15 जवान घायल हुए । आत्मघाती हमले में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम पुलिस नियंत्रण कक्ष परिसर में आयोजित किया गया था,यहां पर मुख्यमंत्री या राज्य सरकार का कोई भी मंत्री या नेता उपस्थित नहीं हुआ। सीआरपीएफ के जवानों में इसी को लेकर गहरी नाराजगी थी। उनमें कुछ अपनी भावनाओं को काबू में नहीं रख पाए और उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने गुस्से का इजहार किया। जवानों ने कहा, अगर कोई पत्थरबाज मारा जाता है या हिंसा में शामिल कोई अन्य व्यक्ति मरता है तो राज्य के नेता उसके घर जाते हैं-संवेदना व्यक्त करते हैं। लेकिन जवानों के मारे जाने का किसी को दुख नहीं है। सीआरपीएफ के जवानों की इस नाराजगी की जानकारी मिलने के बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने श्रीनगर एयरपोर्ट पर शहीदों को श्रद्धांजलि की औपचारिकता पूर्ण की । जिसका जवानो मे गहरा रन्ज है।
संसद हमले के दोषी अफजल गुरू फ़ांसी के वक्त भी आतंकवादियो के मानवधिकारो को लेकर उनका काफ़ी पेट दुखा था जबकि कश्मीरी पंडितो के मानवधिकारो की कभी उन्हे लेशमात्र भी चिन्ता नही हुई 2011, श्रीनगर के लालचौक में भाजपा द्वारा तिरंगा फहराने का उन्होने बेहद अचंभित करने वाला शर्मनाक विरोध व तीखी विषैली प्रतिक्रिया व्यक्त की थी जबकि ईद पर वहीं पकिस्तानी झंडा फ़हराये जाने पर वे कुछ नही बोले थे , कश्मीर में प्रभावी सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को वापस लेने की मुहिम तो वे चला ही रहे है , आज वास्तविक हालत यह है कि नवंबर 2010 में बनी इस आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति की शर्तो के अनुरूप एक भी आतंकी ने समर्पण नहीं किया है। समर्पण करने वाले आतंकियों के पुनर्वास के बजाय राज्य सरकार गैरकानूनी तरीके से आतंकियों को घाटी में लौटने को प्रोत्साहित करती रही है। गृह मंत्रालय के पास मौजूद आंकड़ों के अनुसार, समर्पण व पुनर्वास नीति बनने के बाद से अब तक 241 आतंकी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से वापस घाटी में लौट चुके हैं। इनमें से 113 आतंकी तो परिवार के साथ लौटे हैं, लेकिन कोई भी आतंकी निर्धारित पुंछ-रावलकोट, उरी-मुजफ्फराबाद,वाघा और दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के तय रास्ते से नहीं लौटा है। नीति के अनुसार, इन चार रास्तों के अलावा किसी अन्य रास्ते से लौटने वाले आतंकी को पुनर्वास सुविधाएं नहीं दी जाएंगी। आज तक जम्मू-कश्मीर सरकार उन्हें नेपाल के गैरकानूनी रास्ते से आने के लिये प्रोत्साहित करती रही है क्यो ? अभी तक लौटे पूर्व आतंकियों ने इसी रास्ते का इस्तेमाल किया है। सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, लियाकत के खिलाफ दिल्ली पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाने से पहले राज्य सरकार को अपनी पुनर्वास नीति बदलनी चाहिए। एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति से ज्यादा राज्य सरकार की कार्यप्रणाली को जिम्मेदार मानते हैं। उनके अनुसार,राज्य पुलिस को लियाकत के नेपाल के रास्ते लौटने की जानकारी यूपी, दिल्ली और पंजाब में संबंधित एजेंसियों को देनी ही चाहिए थी। पूरी दुनिया में कही भी समर्पण का काम चोरी छुपे नहीं होता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर सरकार यही कर रही है जो संदेहास्पद है और कोई भी बोलना नही चाहता कि वह ऐसा क्यो कर रही है जबकि जानते सभी है इसी वजह से यह समस्या और बढ़ती जा रही है।
जम्मू कश्मीर के जितने लोग पाकिस्तान जाकर आंतकी प्रशिक्षण ले रहे थे, आतंकी गतिविधियों में लिप्त थे। उनकी सूची तैयार कर जम्मू पुलिस ने ही वर्ष 2000 में उर्दू में मोस्ट वांटेड आतंकियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की थी। वह एफआइआर सेल के पास उपलब्ध भी है। एफआइआर की प्रति भी उपलब्ध कराई गई, जिसमें मोस्ट वांटेड की सूची में लियाकत का नाम 84 नंबर पर अंकित है। जब लियाकत जम्मू-कश्मीर आत्मसमर्पण करने आ रहा था तो इसकी जानकारी जम्मू-कश्मीर पुलिस को क्यों नहीं थी कि वह किन-किन रास्तों से भारत आ रहा है? अगर उन्हें इसकी जानकारी थी तब उन्होंने सेंट्रल जांच एजेंसी, दिल्ली पुलिस व गोरखपुर पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी? वह इसे लेने गोरखपुर क्यों नहीं आई? हिजबुल मुजाहिदीन आतंकी लियाकत शाह की गिरफ्तारी को लेकर जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान में बैठे लोगों की बातचीत को खुफिया एजेंसियों ने इंटरसेप्ट किया है। सूत्रों का कहना है कि कॉल जम्मू-कश्मीर से पाकिस्तान की गई थीं। इनमें लियाकत के पकड़े जाने की सूचना देते हुए अफसोस जाहिर किया गया।
दूसरी और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला मुजाहिदीन आतंकी लियाकत शाह के पकड़े जाने के इस मामले मे विशेष रूचि दिखाते हुए द्खलदांजी कर रहे है जबकि आत्मघाती हमले में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि देने मे उनको कोई रूचि नही थी न ही उन्होने आज तक कभी भी दिल से खुलकर आतंकवाद की निंदा ही की है और अब वे एक आतंकी के लिये दिल्ली पुलिस को झूठा सिध्द करने पर आमदा है और मामले की एनआइए से जांच की मांग कर चुके हैं। केन्द्र सरकार ने बहुत आसानी से उनकी मांग स्वीकार कर ली है जो नही की जानी चाहिए थी इससे पुलिस और सुरक्षाबलो का मनोबल कमजोर होगा भारत मे आमतौर पर यह माना जाता है कि जांचे बहुत निष्पक्ष नही होती है वे सत्ता से प्रभावित भी हो सकती है चूंकि उमर अब्दुल्ला कान्ग्रेस के मानसपुत्र है ,युवा तुर्क मुस्लिम है मोदी के ह्व्वे के साथ चुनाव सर पर है इसलिये संदेह को बल मिलता है कि जाँच के नाम पर कोई खेल न हो जाये | उम्मीद है कि इस मामले मे सभी सुरक्षा ऐजेन्सियां एक दूसरे को भरोसे मे लेकर काम करेगी |

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