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डाक्टरो को भगवान कहे या डाकू

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डाक्टरो को भगवान कहे या डाकू \ अधोपतन एक नोबल प्रोफ़ेशन का
शिक्षा के साथ साथ आज स्वास्थ्य-चिकित्सा के क्षेत्र मे भी व्यवसायिकता अपने संपूर्ण घृणित जलाल के साथ हावी हो गई है अर्थात गंदे धंधो की सभी गंदी बुराईया अपने गंदे रूप मे स्वास्थ्य-चिकित्सा के क्षेत्र मे भी घुसपैठ कर चुकी है । हां यह भी सच है कि चिकित्सा विज्ञान ने बेहद तकनीकि विकास किया है । नयी दवाये, नई विधिया ,नई मशीने और जगह जगह चमचमाते नये नये अस्पताल भी खुल गये है परन्तु चिकित्सा आम और यहॉ तक कि मध्यमवर्ग के लिए भी बहुत ही महंगी हो गयी है और उसकी पहुंच से बाहर भी |
आज अगर किसी आम और यहॉ तक कि मध्यमवर्ग के व्यक्ति को भी कोई बडी बिमारी पकड लेती है तो उसका घर खाली हो जाता है, उसे कर्ज भी करना पडता है ,मकान,जमीन, जायजाद बेचने को भी मजबूर होना पडता है,और उसके पास कोई चारा ही नही रहता है इसीलिए कहते है कि भगवान दुश्मन को भी अस्पताल की सीढ़िया न चढाये। हमारे तमाम विकास के बावजूद हमने आम और मध्यमवर्ग जो %80 से भी अधिक है के बारे में कभी कुछ भी सोच विचार करने का प्रयास ही नही किया , फ़िक्र ही नही की है ।
इस सारी परिस्थिति के लिए हमारे शासक हमारे नीति नियंता ही जिम्मेदार है उन्होने चिकित्सा को सिर्फ़ व्यवसाय ही नही रहने दिया बल्कि एक बेहद चमकदार जानदार मुनाफ़ेदार इन्ड्रस्टीज घोषित कर दिया है जिससे चिकित्सा पर्यटन को आकर्षित कर सके
आज डाक्टरो का व्यवहार बेहद अमानवीय रूप से व्यवसायिक हो गया है । वे खुलकर बेशर्मी के साथ कहते है ,स्वीकार करते है, कि पढाई मे करोड-करोड रूपया खर्च करने के बाद यह डिग्री मिली है । इतना रूपया लगाया है तो ब्याज सहित ,कई गुना वसूल तो करेगे ही । वैसे यह अलग बात है कि इन डाक्टरो की योग्यता के यह हाल है कि इतनी मंहगी डिग्री लेने के बावजूद इनकी पेशेवर योग्यता और निपुणता की औचक जांच की जाये तो अनैक डाक्टर अपनी डिग्री की योग्यता पर भी खरे नही उतरते है। अपनी विशेषज्ञता के बावजूद कई डाक्टर जांच परीक्षण और चिकित्सा के लिए दवा लिखते हुए चिकित्सा करते हुए,आपरेशन करते हुए, न सिर्फ भयंकर गलतियां करते है बल्कि जानते बूझते हुए बेहद चौकाने वाली लापरवाही करते हुए पाये जाते है अब इनके इस कदाचार ,अनाचार ,भ्रष्टाचार लापरवाही को केवल कोई ड़ाक्टर ही तो उजागर कर सकता है परन्तु एक ड़ाक्टर ,ड़ाक्टर की पोल कम ही खोलता है क्योकि इनमे भी एक मौसेरा भाईचारा तो रहता ही है |
एक जोक है ‘जो है तो अतिश्योक्तिपूर्ण जोक परन्तु ड़ॉक्टरो की भूल, लापरवाही, गलती और गैरजिम्मेदाराना व्यवहार की ओर स्पष्ट सांकेतिक ईशारा बहुत अच्छे से अवश्य ही करता है
लतीफ़ा है-
पप्पू की टांग नीली हो गयी। ड़ॉक्टर के पास जाता है
डॉक्टर (पप्पू से)- जहर है ,तुम्हारी टांग काटनी पड़ेगी।
टांग काटकर नकली लगा दी गयी।
2 दिन बाद नकली टांग भी नीली पड़ गयी।
डॉक्टर – अब तुम्हारी बीमारी समझ मे आयी , तुम्हारी जींस रंग छोड़ती है।
दुखी, परेशान, कराहता मरीज डाक्टर के पास जाता है उसे भगवान समझकर परन्तु डाक्टर के लिए वह मा़त्र एक ग्राहक, शिकार , बनकर रह जाता है ।और उसे बेदर्दी से लूटा नोचा जाता है । इस सारे मामले को और डाक्टरो को और अधिक पथभ्रष्ट करने के लिए %40 से %400 तक के मुनाफ़ा कमाने वाली दवा कम्पनियो ने आग में घी का काम किया है ।
दवा कम्पनियो के लालच का एक उदाहरण यहां प्रस्तुत है कि एक नई दवा कम्पनी ने कुछ साल पूर्व अपना एक महंगा टानिक सायरप प्रोडक्ट लांच किया। उसके फार्मूले मे बेतुका अनावश्यक संयोजन था और खतरनाक बात यह थी कि उसमे अनावश्यक रुप से स्टेराईड मिलाया गया था । उसकी एक हजार शीशिया लिखने वाले डाक्टर को एक मंहगा तोहफा दिया जाना था ।आजकल कारपोरेट के जमाने में तो यह गिफ्ट विदेश यात्रा पैकेज टूर तक विस्तार पा गया है । उस दवा कम्पनी के प्रतिनिधि ने एक बाल रोगविशेषज्ञ को इस मंहगे तोहफे का आफर दिया था और उस डाक्टर.ने अगले पन्द्रह दिन मे आने वाले अपने हर बाल रोगी को चाहे उसे किसी भी तरह की बिमारी हो उसे अनिवार्य रूप से यह टानिक लिखा और अपना लक्ष्य प्राप्त किया । अब उससे किस बच्चे को क्या व कितने साईड इफेक्ट हुए, इस सबसे उन्हे कोई लेनादेना नही , उन्हे तो उनका तोहफा मिल गया बस। हो सकता है वे बच्चे उन ” स्टेराईड साईड इफेक्टो” को जीवन भर भोगे, जिसके तहत, उनका शारीरिक मानसिक विकास अवरूद्ध भी हो सकता है , शरीर बेहद मोटा हो सकता है, लड़कियो को मूछें निकल सकती है या बच्चे को जीवन भर की विकलांगता भी हो सकती है ।
पिछले दिनो जयपुर. शहर के प्रमुख डॉक्टरों के यहां आयकर विभाग की टीम ने छापे मारे आयकर विभाग के अधिकृत सूत्रों के अनुसार डॉक्टरों पर हुई कार्रवाई में अघोषित रूप से डॉक्टरों के प्रॉपर्टी में भारी निवेश का पता चला है। डॉक्टरो ने जयपुर के अलावा दिल्ली और वहां आसपास के इलाकों में प्रॉपर्टी की खरीद की है। प्रॉपर्टी की खरीद के मामले की आयकर विभाग की टीम जांच कर रही है। गौरतलब है कि आयकर विभाग ने एक साथ नौ डॉक्टर्स पर कार्रवाई की थी। आठ डॉक्टरों ने 16 करोड़ 75 लाख रुपए की अघोषित आय सरेंडर की थी, लेकिन एक हड्डी रोग विशेषज्ञ ने दूसरे दिन 2 करोड़ 20 लाख रुपए की अघोषित आय सरेंडर की । डॉक्टरों को संसाधन और दवाइयां सप्लाई करने वाली कंपनी के यहां भी इनकम टैक्स के अफसर पहुंचे तो उनकी लेखा पुस्तकों में डॉक्टरों को विदेश ट्रिप कराने के साथ ही अन्य यात्राओं के बिल भी मिले। इस संबंध में कंपनी के अधिकारियों ने बताया कि डॉक्टर मोटा कमीशन लेने के अलावा विदेश ट्रिप के लिए हमेशा दबाव बनाकर रखते हैं। विदेश ये डॉक्टर जाते हैं और खर्चा कंपनी को भुगतना पड़ता है। विदेश यात्राओं का खर्चा उठाना हमारी मजबूरी है। अंततः तो यह मरीज से ही कीमतो को बढ़ा करके वसूल किया जाता है और मरीज को मिलने वाले संसाधनों, दवाओ की कीमते बढ़ा दी जाती है। इस प्रकार न जाने कितने उदाहरण लालच की वजह से हर दिन घटित हो रहे है परन्तु उसे रोकने की हमारे पास कोई व्यवस्था या उपाय ही नही है और ना ही सरकार इसको लेकर गम्भीर है ना ही उसके पास इस सबमे आमूलचूल सुधार करने की कोई कार्ययोजना ही है इस प्रकार से यह सब चिकित्सा क्षेत्र मे लोभ और सरकार की निष्क्रियता की वजह से फैली हुई आज महाबुराईया आम हो गई है ।
चिकित्सा क्षेत्र मे सबसे अधिक हलाहल लूट मचाई है अस्पताल नर्सिंग होम के मालिको के साथ मिलकर सर्जनो ने । पहले पहले इसकी शुरूआत हुई थी डिलेवरी केसो से । उसमे मरीज की थोडी सी भी सम्पन्नता दिखाई दे जाने पर सर्जरी के लिए दबाव बनाया जाने लगता था यह आज भी होता है इसमे होता यह है कि , डिलेवरी के लिये मरीज भर्ती हुई कि दर्द निवारक दवाये सलाईन के साथ देना शुरू कर देते है फिर एकदम से डराया जाता है कि दर्द नही उठ रहा है जच्चे बच्चे की जान को खतरा हो सकता है, जहर फैल सकता है, तुरन्त आपरेशन करना होगा, परिजन घबराकर तुरन्त सर्जरी की सहमति दे देता है इस प्रकार से , अनावश्यक रूप से मरीज के साथ उसकी जेब की भी सर्जरी हो जाती है । आप खुद आंकड़े उठाकर देख ले कि आज कितने प्रतिशत डिलेवरी बिना सर्जरी के होती है तो आपको पता चल जायेगा कि सच्चाई कितनी लोभ मे ड़ूबी हुई और भयानक है । परन्तु यह बात केवल कुछ हजार रुपयो तक की ही थी और है ।
इसके बाद हल्ला आया हार्ट सर्जरी का और अब किड़नी ट्रांसप्लांट सर्जरी, लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी का । आज पैसा बनाने मे सबसे उपर ये नाम है उनमे ये सर्जरी ही मुख्य है । हार्ट की सर्जरी का विस्तार दस लाख तक और किड़नी ट्रांसप्लांट सर्जरी लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी का विस्तार पचास लाख तक हो गया है । और जिन्होने यह दुकाने खोल रखी है उन्हे ग्राहक तो चाहिए और ग्राहक को खोजने फंसाने के लिए नये नये हथकंड़ो का इस्तेमाल होता है उसके लिए भरपूर कमीशन भी बांटे जाते है । भ्रष्टाचार अनियमितता यहां तक होती है कि सर्जरी के कुछ हजार रूपयो के आधारभूत खर्च को लाखो रूपयो तक खींच ड़ाला जाता है । और इसके लिए नये नये फंडे अपनाये जाते है उदा. के लिए विकासशील नगरो में वहां के स्थानीय डाक्टरो को अपना गुप्त एजेन्ट नियुक्त कर देते है, जो सर्जरी की वास्तविक आवश्यकता वाले मरीजो के अलावा ऐसे मरीजो को भी ड़राकर रेफर कर देते है जिन्हे सर्जरी की वास्तविक आवश्यकता ही नही होती है हां परन्तु वे सर्जरी का खर्च उठा सकते है, और यहां वही सक्षमता उनका अपराध भी साबित होती है ! महानगरो के डाक्टर विकासशील नगरो में वहां के स्थानीय डाक्टरो के सहयोग से मुफ्त जांच शिविरो का आयोजन करते है जिसमे उनके पास दो थर्मामीटर होते है एक वे मरीज के शरीर पर लगाते है दूसरा मरीज की जेब पर लगाते है । जेब का तापमान देखकर वे उनमे से कुछ मरीजो को छांट कर अगली जांच के लिए अपने महानगर के बड़े भारी चमचमाते अस्पताल मे बुलाते है जितने लोग वहां पहुंचते है उन्हे फिर से दूसरा थर्मामीटर लगाया जाता है जिनकी जेब वास्तव में अधिक गर्म होती है उन पर सर्जरी का मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया जाता है और फिर उनका शिकार किया जाता है अर्थात सर्जरी की जाती है ।
यहां तक सुना है कि विकासशील नगरो में वहां के स्थानीय डाक्टर बडे सर्जनो के गुप्त एजेन्ट के रूप मे कार्य करते हुए नये मरीजो को लीवर और किडनी डेमेज करने वाले साइड ईफ़ेक्ट वाली दवाये जानबूझ कर लिखते है ताकि शहर से उनके लिये ग्राहक निकल सके |
यह बात समझ मे नही आती कि किसी एक सर्जरी के लिए एक सर्जन लाखो रूपये किस बात के लेता है, क्या अपने ज्ञान और कौशल के लेता है ? नही ये लाखो रूपये पीड़ित की मजबूरी के लिए जाते है | यह नैतिक रूप से सरासर अनुचित ही नही अपराध भी है । कोई अन्य व्यक्ति जो अपने तकनीकि ज्ञान से कोई अन्य कार्य करता है वह भी अपने कार्य का डाक्टर सर्जन ही तो होता है परन्तु वह कुछ सौ या हजार रूपयो मे अपना कर्तव्य निभा देता है जबकि सर्जन लाखो रूपये लेता है यह कहॉ का न्याय है और इस परिस्थिती मे गरीब और मध्यम वर्ग क्या करेगा इस बाबत किसी ने कुछ सोचने का कभी प्रयास भी नही किया है । डॉक्टर जिसका इलाज कर सकते है ,अस्पतालो मे जिन्हे ठीक किया जा सकता है ,ऐसे कई मरीज अस्पतालो के गेट पर पैसा न होने से दम तोड़ देते है।
मरूस्थल में अगर किसी के पास पानी हो और वह प्यास से तड़फते व्यक्ति से एक गिलास पानी के बदले उसके पास से एक करोड़ रूपया मांग ले या जितना धन हो वह सब मांग ले तो वह उसे देना ही होगा और मजबूरी में वह देगा भी क्योकि वह रूपया पानी की कीमत नही जान की कीमत है । प्रकारांतर से यह उस डाकू के समान ही है जो जान बख्शने के बदले सारा धन ले लेता है और उसको वह देना ही पड़ता है वह भी जान की ही कीमत है । इसी प्रकार से डॉक्टर भी वही करता है फर्क यह है कि वह जान बचाने के लिए ढ़ेर सारे पैसे मांगता है। डाकू.- अब तेरी जान ले लूंगा / डॉक्टर – अब तेरी जान बचाउंगा नही । दोनो में दांव पर तो जान ही लगी है परन्तु डाकू जितना व्यक्ति के पास मे है उतना लेकर बख्श देता है ज्यादा वाले से ज्यादा ले लेता है कम वाले से कम ले लेता है लेकिन डॉक्टर किसी को भी बख्शता नही है ,उसे तो निश्चित रूपया ,चाहिए याने चाहिए, नही है तो कर्ज लो ,घर बेचो ,खेती बेचो या अपने आपको बेचो कही से भी लेकर के आओ और मुझे दो । इस तरह से तो डाकू ज्यादा मानवीय मालूम पड़ता है परन्तु डाकू के पास आदमी खुद होकर नही जाता जबकि मजबूरी है कि डॉक्टर के पास आदमी को खुद होकर जाना पङता है ।
अस्पतालो में जगह खाली हो तो पुराने मरीजो को छुट्टी नही दी जाती । आई. सी. यू और वेन्टीलेटरो पर मृत मरीज को भी चढ़ाये रहते है नयी नयी अनावश्यक मंहगी जांचे बार-बार कराई जाती है अनावश्यक मंहगी दवाये लिखी जाती है , अनावश्यक सर्जरी बेहद जरुरी बता कर दी जाती है । और भी न जाने क्या क्या किया जाता है यह पता ही नहीं चलता क्योकि सारे अस्पताल बेहद अनावश्यक गोपनीयता बरतते है ,अपने मरीज की फाईल किसी को नही देते , देते है तो केवल डिस्चार्ज कार्ड और भारी भरकम बिल। यह बेहद अनावश्यक गोपनीयता की गलत परम्परा अस्पतालो की अपनी सुरक्षा,बचत ,अपनी गल्ती, भूल, लापरवाही, अपनी लूटमार, ड़कैती आदि को छुपाने के लिए अस्पतालो ने अपना रखी है इससे पारदर्शिता का पूर्णतया लोप हो जाता है और वे मनचाही लूट मचाने के लिये भी बिल्कुल स्वतंत्र रहते है । इस अनावश्यक गोपनीयता को भी आपराधिक कृत्य घोषित किया जाना चाहिए ।
डाक्टरो और अस्पतालो की लापरवाही का एक और उदाहरण यहां प्रस्तुत है — एक परिचित व्यक्ति जिनकी किडनी मे समस्या थी और उसके लिए वे मंहगी दवाये खा रहे थे परहेजी जीवन जी रहे थे । एक दिन वे स्कूटर पर कहीं जा रहे थे एक ट्रक ने उन्हे टक्कर मारी वे गिरे और उनके बांये पैर मे गंभीर चोटें आई | उन्हे पूना के एक प्रसिद्ध अस्पताल मे भर्ती किया गया उनके पैर का आपरेशन किया गया । उन्हे होश आ चुका था और वे घर जाने के बारे मे सोचने लगे थे । उनके घाव सुखाने के लिए उन्हे अत्यंत महंगे एवं हैवी एंटी बायोटिक के इन्जेक्शन लग रहे थे जो उनकी किडनी के लिए जहर के समान साबित हुए और अचानक किडनी के फेल हो जाने से उनकी मौत हो गयी । इस इलाज मे उनका घर भी बिक गया । वास्तव मे यह ड़ाक्टरो की आपराधिक लापरवाही का उदाहरण है ,क्या इलाज करते हुए यह ड़ाक्टरो की ङ्यूटी नही है कि कोई भी दवा देते समय वे देखें कि यह दवा इस मरीज के लिए जानलेवा तो साबित नही होगी, क्या डाक्टरो को यह भी नही देखना चाहिए था कि वह पहले ही किडनी की दवा खा रहे है उन्हे इतने हैवी एंटीबायोटिक न दिये जाये । परन्तु हो सकता है कि उस एंटीबायोटिक बनाने वाली कम्पनी ने उन्हे कुछ टारगेट दिया हो । उनके छोटे से लालच के आगे मरीज के जीवन का क्या मूल्य ? और उन्हे इसके लिए कही कोई पूछने वाला भी नही है ।
एक अन्य उदाहरण मे – इन्दौर के पास के एक गांव मे रहने वाले एक गरीब व्यक्ति जिनकी कामन बाइल डक्ट मे रूकावट हो गयी थी इन्दौर आये और एक प्रसिद्ध सर्जन को दिखाया उसने एक प्रसिद्ध अस्पताल मे उन्हे भर्ती कर ऐन्ड़ोस्कोपी से एक कृत्रिम नली लगा दी । और उनसे सत्तर हजार रूपये ले लिए । तीन माह बाद उन्हे वहां फिर से रूकावट हो गयी और उसमे बहुत तेज दर्द भी हो रहा था उन्होने उसी डाक्टर से सम्पर्क किया डाक्टर ने कहां कि एक लाख रूपया हो तो मेरे पास आना । नहीं तो आने की कोई जरूरत नही है । अब उनके पास एक लाख रूपया नही था सो वे बड़े सरकारी अस्पताल में भर्ती हुए वहां के डाक्टर को प्रायवेट में फीस देकर भी आये परन्तु वह डा. तीन दिन तक फीस लेकर भी खुद अस्पताल में होते हुए उन्हे देखने भी नही आया तबियत ज्यादा बिगड़ने पर रातोरात घबराकर वे फिर एक प्रायवेट अस्पताल मे भागे वहां भी कुछ लूटामारी हुई और वहां उन्होने प्राण त्याग दिये इस बीच उन्होने असीम पीडा भोगी । इस इलाज के लिए उन्हे अपनी पुरखो की खेती भी बेचना पडी ।
मरीज के परिजनो ने बाद मे आशंका व्यक्त की थी कि मरीज को प्रायवेट अस्पताल मे भर्ती की प्रक्रिया करते हुए ही मौत हो गई थी फिर भी दो घंटे तक परिजनो को शव के पास जाने देखने भी नही दिया और बाद मे कपड़े से सी करके दे दिया दो घंटे मरीज के शव के साथ उस प्रायवेट अस्पताल वालो ने क्या किया, कही उनके शरीर के अंग चुराने जैसी कोई हरकत तो नही कर ली गई ? शोकाकुल परिवार जन विलाप करते हुऐ एक दूसरे को कठिनाई पूर्वक किसी तरह संभाल रहे थे इस गम्भीर गमगीन माहोल में उन्होने अपने सन्देह व आशंका को उजागर करना उचित नही समझा और मौन रह गये । इस तरह कॆ कांड़ किये जाना कोई बहुत बड़ी बात नही है क्योकि इस तरह की अनैको घटनाये हमारे देश मे पहले भी हो चुकी है उनमे से कुछ मामले उजागर भी हुए है और अंगचोर गिरोह गिरफ़्तार भी किये गये थे जिनमे ड़ाँक्टर भी शामिल थे । हिला देने वाली इस प्रकार की हजारो जानी अनजानी दुखद घटनाऔं के कलंक से हमारा चिकित्सा जगत शर्मशार है । इस प्रकार से समूचे चिकित्सा क्षेत्र में ऐसा कुछ हुआ है और हो रहा है जो नही होना चाहिए ये लोग अपने छोटे से लाभ के लिए आप पर पहाड़ जैसा संकट धकेल सकते है एक समाचारपत्र ने निम्न घटना पर लिखते हुए लिखा था कि मेरे शहर के डाक्टर डाक्टर नही रहे वे तो डाकू बन गये है , देखिये इतने नोबल प्रोफेशन को उन्होने कितना नीचे गिरा दिया है ।
पूर्व में दानी धर्मात्मा सेवा की भावना से अस्पताल आदि बनवाते थे और उनमे मुफ्त इलाज किया जाता था परन्तु आज तो हमारे अस्पताल को निवेश का एक बेहद ही शानदार लाभदायक व्यवसाय माना जाने लगा है धनी लोग अस्पताल में खूब निवेश कर रहे है क्योकि उससे उन्हे लाभ कई गुना रिटर्न होकर मिल रहा है । आज तो धर्मात्माओं के द्वारा बनवाये गये अस्पतालो को भी इन लालची लोगो ने अपने मकड़जाल मे फंसाना शुरू कर दिया है लाभ का प्रतिशत इतना भारी है कि लोभ का संवरण करना बेहद कठिन है होटलो की चेन की तरह अस्पतालो की ग्रुप चेन बन गई है और अस्पतालो मे सितारे लटक गये है ।
क्या यही हमारे विकास की गोरवशाली कहानी है , क्या इसे हम सच्चा विकास कह सकते है ,क्या इस तरह से कार्पोरेट सेक्टर को मनमाने व्यवसाय की इजाजत दी जानी चाहिए थी ,क्या इस तरह से लूटखसोट कर मरीजो की पीड़ा , कराहो से खेलकर लोभ लालच का यह भारी लाभदायक व्यवसाय खड़ा करने की अनुमति दी जानी चाहिए थी , कदापि नही , अब इस लालच का कोई तो अंत होना ही चाहिए ?
कहते है कि डाकन भी एक घर छोड देती है ,जब व्यवसाय के इतने सारे क्षेत्र खुले हुए है तो जनता के दुख और पीड़ा से खेलकर ही व्यवसाय करने की क्या आवश्यकता है ? और अगर मुनाफा ही मापदंड है तो मुझे तो जो नशे के ड्रग का व्यवसाय करते है उनमे और इन व्यवसायियो में ज्यादा फर्क दिखाई नही देता है क्याकि दोनो आज अपने लालच के चलते किसी भी हद तक गिर सकते है । मानवता के प्रति इस गम्भीर अपराध को अब तो रोका ही जाना चाहिए ?
डाक्टरो के चिकित्सा पेशे के बारे में बात करे और नर्सो के बारे में चर्चा न करे तो बात अधूरी रह जायेगी । क्योकि नर्सिंग का भी चिकित्सा कार्य मे बराबर का महत्व है एक समय था जब नर्सिंग के पेशे को भी बहुत ही पवित्र सम्मान प्राप्त था वह मरीज के दुखदर्द को अपनी सेवा, स्नेह ,ममता से दूर कर देती थी मरीज मे शीघ्र अच्छा होने का विश्वास पैदा कर देती थी वे मरीज की सेवा को भगवान की पुजा के बराबर मानती थी अनैको महिलाओ ने नर्सिंग को मानवसेवा का सुअवसर प्राप्त हो सके केवल इसलिए ही चुना था और इसके लिए कई महिलाओ ने विवाह भी नही किया ऐसे उदाहरण भी मौजूद है । परन्तु अब बहुत खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज नर्सिंग से भी सेवा भावना समाप्त हो गई है ममता और स्नेह तो बहुत दूर का विषय हो गया है लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना व्यवहार उनके आचरण का भी अंग बन गया है और यह सब स्वाभाविक भी है कि जब सब कुछ बिगड़ चुका हो तो सिर्फ उनसे ठीक बने रहने की उम्मीद करना भी अनुचित ही होगा । परन्तु अगर हमे सम्पूर्ण चिकित्सा के पेशे मे आमूलचूल सुधार करना है तो नर्सिंग के पेशे मे भी सुधार की और अनिवार्य रूप से ध्यान देना होगा क्योकि उसके बिना कोई भी सुधार अधूरा ही रहेगा ।
इन सब बुराइयो से निजात पाने के लिए सुझाव है कि —
चूंकि चिकित्सा यह एक अत्यावश्यक सेवा है अतः सर्वोतम उपाय है कि समूचे चिकित्सा जगत का राष्टीयकरण कर दिया जाए। सारी चिकित्सा सेवा सरकार के आधीन व देखरेख में हो । समय समय पर डाक्टरो के ज्ञान की गुणवता की जांच होती रहनी चाहिए ।चिकित्सा पेशे का स्वास्थ ठीक रखने के लिए इसमे भ्रष्टाचारमुक्त छापामार जांच की परम्परा भी विकसित की जानी चाहिए । और जांच मे सेटिंग न हो पाये इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए । इस मामले ,मे हम ब्रिटेन का भी अनुसरण कर सकते है । आयुर्वेद ,होम्योपैथी को भरपूर प्रोत्साहन देना चाहिए अगर हम प्रजातांत्रिक देश है तो यह अवश्य होना ही चाहिए।
उपरोक्त लेख को हो सकता है अतिश्योक्ति या अपवाद कहकर खारिज कर दिया जाये और खारिज करने के उनके पास आधार भी हो परन्तु यह भी हो सकता है कि सच्चाई और कई परतो और घृणित रूप मे छुपी हो, फिर भी हमारा आशय यह नही है कि सारे डाक्टर ही ऐसे है और सारे मामलो में सर्जरी गैर जरूरी ही होती है , और सारे अस्पताल केवल लूटामारी मे लगे हुए है परन्तु आजकल इस दूसरी प्रवृति का काफी विस्तार और तेज गति से अनुसरण किया जाना पाया जा रहा है। अतः अब तो ज्यादा अच्छा तो यह होगा कि समय रहते इस पवित्र पेशे की पवित्रता पूर्णतः नष्ट न हो जाये इसके पहले ही जाग जाये और इस पवित्र पेशे की पवित्रता को पुर्नस्थापित करने के लिये आवश्यक सख्त कदम उठा ले यही आज समय की मांग और महती आवश्यकता है |
– गिरीश नागड़ा

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