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भारत को श्राप प्रतिभा है पाप – गिरीश नागड़ा
एक और विश्वविधालयीन शोधो मे शायद ही कोई शोध ऐसी होती होगी जो समाज और देश के विकास मे काम आ सके जबकि इन पर करोडो रूपये खर्च किये जाते है किसी भी शोध का मूल उद्देश्य क्या होना चाहिये यही कि वह पूर्ण होकर देश व मानवता की भलाई के काम आये या आगे ऐसे किसी कार्य की शोध या अनुसंधान का आधार बने और अंत मे ऐसे मानवता ,देश की भलाई के परिणाम पर पहुँचा जा सके परन्तु आज तो विश्वविधालयीन शोधो के नाम पर एक ही बात या कार्य को घुमा फ़िराकर दोहराया जाता है वहीशोध है बस रिसर्च के नाम पर केवल रिपीटेशन,मेनीपुलेशन ही होता है केवल कुछ शब्दो का हेरफ़ेर शोध हो जाता है या फ़िर किसी विदेशी शोधपत्र की अक्षरशः नकल उतार कर शोध अवार्ड करवा ली जाती है,किसी दूसरे के श्रम की वाहीवाही किसी दूसरे के द्वारा लूट ली जाती है और असली शोधकर्ता मुंह टापता रह जाता है, शोध निर्देशक अपने प्रभाव से किसी भी ऐरे गेरे शोधकर्ता को डाँक्टरेट दिला सकता है और इस प्रकार से यू.जी.सी.,सी.एस.आई.आर. एवं देश की अन्य संस्थाओ से करोडो रुपये झटक लिये जाते है | विश्वविधालयीन शोधो से तो अधिक उपयोगी शोधे उन स्कूली बच्चो के माडल अधिक मौलिक आइडियाज वाले व उपयोगी लगते है |
इन शोधो के अलावा भी इस देश मे कुछ शोधे होती है जो देश व मानवता की भलाई के काम आने वाली होती है या आगे ऐसे ही किसी उपयोगी कार्य की शोध या अनुसंधान का आधार बन सकती है और अंत मे जिससे ऐसे मानवता व देश की भलाई के परिणाम पर तो पहुँचा जा सकता है एक मोटे अनुमान के मुताबिक ऐसी अपरम्परागत शोध कम से कम लगभग एक हजार की संख्या मे प्रतिवर्ष होती है इन शोधो को न तो कही से कोई फ़ंड मिलता है ना ही कोई प्रोत्साहन ,ना सहायता, ना ही इनके पास कोई आवश्यक शिक्षा या पर्याप्त डिग्री होती है ना ही पर्याप्त साधन होते है फ़िर भी ये प्रतिभाये अपनी धुन मे लगकर, गांठ का पैसा लगाकर, उधार लेकर, अपना कार्य पूर्ण करके ही दम लेते है परन्तु होता वही है जो इस देश की तकदीर मे लिखा है बस कुछ समय के लिये चर्चा हो जाती है कभी कोई आश्वासन मिल जाता है परन्तु बाद मे सब भुला दिया जाता है |
अगर मौलिक और जन उपयोगी शोधो को देश गंभीरता से लेता और देश के कर्णधारो मे परिवर्तन की कोई ईमानदार उत्कंठा होती तो सोचिये प्रतिवर्ष अगर एक हजार नये रास्ते हमारी कठीन समस्याओ के लिये खुलते तो पैसठ सालो मे तो हम समस्या रहित देश हो गये होते किन्तु ! कैसे हो जाते हमारे देश के नेता ऐसा कभी होने ही नही देते और सच मे होने ही नही दिया, ना ही होने देगे ,क्योकि, समस्या है, आप और हम परेशान है , तो ही नेताओ की नेतागिरी है अन्यथा इन्हे पूछेगा ही कौन बेचारे श्रीहीन हो जायेगे |और माया कैसे मिलेगी ?
यहाँ आजादी के बाद की गई लाखो शोधो,खोजो मे से उदाहरणस्वरुप कुछ खोजो,शोधो का जिक्र कर रहा हूं जो हमारी लाचारी माने जाने वाले उर्जा क्षेत्र से जुडी हुई है और हमारी उर्जा संबधी सभी समस्याओ का ठोस हल प्रस्तुत करती है परन्तु देखने वाली बात यह है कि देश ने उन्हे किस घनघोर उपेक्षा के साथ नजरदांज किया है हमारा यही दुर्भाग्यपूर्ण दुखद रवैया 65 वर्षो से अनवरत चल रहा है
कुछ उर्जा क्षेत्र से चुनिदा शोधो के समाचार देखिये और अपने दुर्भाग्य पर रोईये कि सम्पन्न होकर भी हम भिखारियो जैसा जीवन जीने को मजबूर है जबकि इन चुनिन्दा खबरो के हिसाब से तो तेल,गैस,बिजली मे भारत को आत्मनिर्भर हो जाना चाहिए था परन्तु वास्तविकता मे तो हुआ इसका उलटा ऐसी किसी भी क्रांतिकारी खोज का भारत को कभी कोई लाभ मिल ही नही पाया या मिलने ही नही दिया गया | हर एक क्रांतिकारी खोज की भ्रूण हत्या इतनी खामोशी से कर दी जाती है जैसे कि वह कुँवारी माँ का भयंकर पाप है | देखिये—
क्या हुआ इनकी खोजो का ? — ( एक )
चेन्नई के रामार पिल्लई जडी बुटियो से पेट्रोल बनाया/ 500 लीटर पेट्रोल प्रतिदिन बनाते है जो हाथो हाथ बिक जाता है राज्य सरकार ने उन्हे इंड्रस्ट्रीयल स्टेट मे स्थान दिया है मलेशिया से उन्होने पेटेन्ट करा लिया है | वैज्ञानिक उनके दावो पर विश्वास नही करते थे | दै. भा. 10/5/1999 सोमवार
क्या हुआ इनकी खोजो का ? ( दो ) – प्रो.अलका उमेश झाडगाँवकर जी.एच.रायसोनी काँलेज आँफ़ इंजीनियरिंग नागपुर की अनुप्रयुक्त रसायन की विभागाध्यक्ष को प्लास्टिक के अपशिष्ट से डीजल और पेट्रोल बनाने की तकनीक की शोध मे सफ़लता प्राप्त हो चुकी है उन्होने अपनी शोध का पेटेन्ट भी करवा लिया है 2003 से वे इसके लिये प्रयासरत थी | प्लास्टिक के अपशिष्ट से प्रति किलो 800 मिलीलीटर श्रेष्ठ गुणवत्ता वाला पेट्रोल प्राप्त होता है इसमे सल्फ़र की मात्रा महज 0.001% है जो पर्यावरण की द्रुष्टि से भी आर्दश है | परन्तु क्या हुआ इनकी खोजो का ?
क्या हुआ इनकी खोजो का ? —( तीन )
गोबर गोमूत्र से मिथेन गैस-चंडीगढ से 70 कि.मी. दूर सतलुज नदी के किनारे बहादुरपुर नाम का गांव दिलबीरसिंग का फ़ार्म 120 गाय के गोबर गोमूत्र से मिथेन गैस बनाकर 75 घरो मे मुफ़्त बिजली खुद की लाईन से पहुँचाते है 2-2-2 घन्टे दिन मे तीन बार db 7/4/2013
क्या हुआ इनकी खोजो का ? — ( चार )
मोहित ने यामहा बाइक के स्ट्रोक पेट्रोल इंजन को हवा से चलाकर दिखाया – मोहित ने बताया कि इंजन की क्षमता पेट्रोल से चलने वाले इंजन के बराबर है और आरपीएम (राउंड पर मिनट) भी पूरे हैं। नई खोज को देखने वाले लोग दंग रह गए। मूल रुप से उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का रहने वाला मोहित जिले के कुराली स्थित शांति पॉलीटेक्निक में (मैकेनिक आटोमोबाइल ट्रेड) अंतिम वर्ष का छात्र है। मोहित ने यामहा बाइक के स्ट्रोक इंजन को हवा से चलाकर लोगों को आश्चबर्यचकित कर दिया।db 15/5/2013
क्या हुआ इनकी खोजो का ? — ( पाँच )
सीडी से रोशनी राज एक्सप्रेस इन्दौर 14/1/2011
भोपाल। एक 18 वर्षीय युवा खोजकर्ता विष्णु शर्मा अलीगढ़ जिले के एक छोटे से गांव चिंताकावास के रहवासी है ने सीडी में बिजली खोज ली है और वह प्रयोग के तौर पर अपने एक छोटे से कमरे में प्रोजेक्ट तैयार कर बिजली जला रहा है। सालों की मेहनत के बाद मेहनत तब रंग लाई जब अचानक मात्र दो सीडी से कमरे रोशन हो उठे। राजधानी पहुंचे इस युवक की मंशा है कि यदि उसे सहायता मिले तो वह प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा सकता है और बिजली उत्पादन में महत्वपूर्ण सहयोग कर सकता है। लेकिन, उसे डर भी सता रहा है क्योंकि, कई लोग उसकी खोज हथियाना चाहते हैं। क्या है खोज सीडी कैसेट को एक परिधि में रखकर सौर उर्जा से चार्ज कर एक प्रोजेक्ट तैयार किया है, जिसमें मात्र दो ही सीडी 12 वोल्ट तक बिजली देती हैं इस प्रयोग के अंतर्गत जितनी सीडी उपयोग की जाएगीं उतनी ही बिजली बन सकेगी जो बिना किसी खर्चे की होगी। सूरज के रोशनी से कुछ घंटों के लिए चार्ज की गई सीडी से कई दिनों तक लाइट जलाई जा सकती है। अलीगढ़ जिले के एक छोटे से गांव चिंताकावास के रहवासी विष्णु शर्मा ने अपने इस प्रोजेक्ट का प्रदर्शन राज एक्सप्रेस के कार्यालय में किया। वह अपने प्रोजेक्ट को मध्य प्रदेश के लिए देना चाहता है। मैं दूंगा मुफ्त बिजली, सरकार दे संरक्षण विष्णु शर्मा का कहना है कि अगर उसे उचित संसाधन दिए जाएं तो वह एक कमरे की नहीं पूरे प्रदेश की लाइट भी जला सकता है वह भी बिना खर्चे। सरकार उसे पहले संरक्षण दे फिर संसाधन उपलब्ध करा कर उसे बताए कि पूरे प्रदेश में बिजली की कितनी खपत होती है वह उतनी ही बिजली बिना खर्चे के सरकार के लिए बनाने का दावा कर रहा है। शर्मा के अनुसार हाल ही मैं उसका एक प्रोजेक्ट पूरा होने वाला है जिसमें उसने ऐसे शूज और पेड तैयार किए हैं, जिसके माध्यम से वह किलोमीटरों दूर पैरासूट की तरह उड़ सकता है।
क्या हुआ इनकी खोजो का ? — ( छह )
ट्रेन के चलते पहियों से पैदा हो सकती है बिजली
सरकार चाहे तो वह ट्रेन के चलते पहियों से बिजली पैदा कर सकती है। इस तकनीक में हवा, सूर्य या किसी तरह की भू-तापीय ऊर्जा नहीं लगेगी।
यह दावा औरंगाबाद निवासी और नागपुर की एक कंपनी में पदस्थ विजयेंद्र ए. रोजेकर ने किया। उन्होंने मंगलवार को पत्रकार वार्ता में बताया कि ट्रेन के चक्के एक्सल सॉफ्ट पर ठोस तरीके से लगे होते हैं और उसके साथ घूमते हैं। इससे ऊर्जा पैदा होती है। ऐसे में चक्कों को वायरिंग द्वारा डिब्बों में लगे बिजली जनरेटर से जोड़ा जाए तो इससे पंखे, एसी व लाइट चल सकते हैं। इसके अलावा छोटे जनरेटर के बजाय उच्च क्षमता के जनरेटर लगा दिए जाएं तो इससे सभी डिब्बों की बिजली इकट्ठा कर उसे बिजली इंजन के पेंटोग्राफ (इंजन का वह हिस्सा जो बिजली के तार छूता है) से बिजली लाइन में प्रवाहित किया जा सकता है। 10/9/2012
क्या हुआ इनकी खोजो का ? — ( सात )
देहाती वैज्ञानिक बना रहा सैनो कार धनंजय मिश्रा . मोतिहारी (बिहार) 27 Feb-201 Dainik Bhaskar
70 साल के मो. सैदुल्लाह का दिमाग अजीबोगरीब आइडिया का घर है, जहां से पानी पर चलने वाली साइकिल व बिना ईंधन का पंप निकल चुका है
शहर के बाहरी छोर पर मठिया डीह मोहल्ले में रहने वाले मो. सैदुल्लाह टाटा की नैनो को टक्कर देने वाली सैनो कार बना रहे हैं। प्रदूषण मुक्त इस कार की कीमत 60 हजार रुपए होगी। 70 बरस के सैदुल्लाह पानी पर चलने वाली साइकिल, चाभी से चलने वाले पंखे, कई तरह के पंपसेट, सस्ते टै्रक्टर और पनबिजली की सस्ती तकनीक जैसे ‘असाधारण’ आविष्कार कर चुके हैं।
उनका दिमाग ऐसे आइडिया का अजायबघर है। दसवीं तक पढ़े सैदुल्लाह के ये अनोखे आविष्कार आम लोगों के बहुत काम आते हैं। मसलन, सैनो के बारे में उनका दावा है कि टू-सीटर यह कार हवा से पावर जनरेट करेगी। उनका दावा भले ही अतिशयोक्ति लगे, लेकिन वैज्ञानिक-राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी उनके आविष्कारों से प्रभावित हुए थे। सैदुल्लाह ने हमेशा साधनहीन लोगों को ध्यान में रखकर चीजें बनाई हैं। 1975 में चंपारण में आई भीषण बाढ़ ने उन्हें पानी पर चलने वाली साइकिल बनाने के लिए प्रेरित किया। घर का सामान लाने के लिए उन्हें नदी तैरकर पार करनी पड़ती थी, सो उन्होंने उसी साल गहरे पानी और जमीन, दोनों पर चलने वाली ‘नूर साइकिल’ बना डाली। सैदुल्लाह ने अपने हर आविष्कार का नाम पत्नी नूरजहां के नाम पर रखा है। 1985 में उन्होंने पांच लीटर डीजल में छह घंटे चलने वाला ट्रैक्टर बनाया था। इसके पहले वे बिना ईंधन के चलने वाला ‘नूर वाटर पंप’ बना चुके थे। यह आठ घंटे में एक एकड़ खेत की सिंचाई करता है। अब वे इसमें और सुधार कर रहे हैं, ताकि बिना ईंधन के आठ घंटे में पांच एकड़ खेत की सिंचाई की जा सके। सैदुल्लाह आर्थिक दिक्कतों के कारण दसवीं से आगे न पढ़ सके।
इसके बावजूद, मशीनों में सिर खपाने के अपने शौक को उन्होंने कायम रखा। ‘नई और उपयोगी चीज’ बनाने के मामले में वे इतने जुनूनी हैं कि अपनी 40 एकड़ जमीन बेच चुके हैं और राष्ट्रपति पुरस्कार के तौर पर मिले एक लाख रुपए भी लगा चुके हैं। उनके खर्चों से परेशान होकर उनका इकलौता बेटा भी घर छोड़कर चला गया। पर स्वाभिमानी सैदुल्लाह ने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। पानी पर चलने वाली उनकी साइकिल को लेकर टेक्नोलॉजी इन्फर्मेशन एंड फोरकास्टिंग एसेसमेंट काउंसिल ने उन्हें 25 हजार का चेक दिया था, लेकिन बिना शर्त काम करने की जिद में उन्होंने वह चेक अब तक कैश नहीं कराया है।
भारत को श्राप प्रतिभा है पाप – गिरीश नागड़ा
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