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इटारसी मे जो 16जून को हुआ उसे हम आपदा कह सकते है शायद 16 जुलाई तक भी स्थिति सामान्य हो पाएगी इसमे संदेह है किसी भी बढ़ी से बढ़ी दुर्घटना मे स्थिति सामान्य बनाए जाने का शायद यह रेल्वे का लम्बा समय होगा कहते है कि अनैक कुशल तकनीशियन रातदिन एक कर लगे हुए है, अवश्य लगे होगे लेकिन क्या यह दुर्घटना हमारे कौश्ल्य की ,हमारे तकनीकि ज्ञान और क्षमता , हमारे आपदा प्रबन्धन की,अपने कार्य कर्तव्य के प्रति गम्भीरता की हमारे नेताओ, प्रेस मीड़िया के सामाजिक सरोकार की कमी को भी उजागर नही कर रही है समूचे क्र्म मे जनता के कष्ट के लिए कुछ सोचा ही नही गया न तो जनता को सही सूचना दी गई ना ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई यह याद रखना चाहिए कि दुर्घटना या आपदा कितनी भी बढ़ी और भयानक हो लगभग हर बार कुछ राहतपूर्ण कार्य सहज रूपसे और कुछ राहतपूर्ण कार्य विशेष कठीन प्रयासो से किए जा सकते है | कठीन प्रयासो वाले राहतपूर्ण कार्य को छोड़े सहज रूप से किए जा सकने वाले राहत कार्य भी नही किए गए जैसे इटारसी भुसावल, कटनी भुसावल पेसेन्जर रद्दकर दी गई जो आज तक रद्द है जबकि उसको इटारसी के एक दो स्टेशन पूर्व तक लाकर जनता को राहत दी जा सकती थी अप ड़ाउन ट्रेक चेन्ज करने की अस्थाई व्यवस्था की जा सकती थी
इसी तरह अन्य रद्द की गई लम्बे रुट की ट्रेनो मे भी यह व्यवस्था लागू की जा सकती थी
हमारे आपदा प्रबन्धन की सबसे बढ़ी कमी क्या है पता है वह है कि ऐसा कुछ हो सकता है इसकी हमे कभी कोई कल्पना ही नही होती अतः हम कभी भी उसके लिए तैयार ही नही होते है और फ़िर अचकचा कर कहते कि अरे! यह क्या हो गया हमारे साथ ?
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